पौराणिक गाथाओ को घर घर मेसुनाने की परंपरा फिर से कायम हो – डॉ कुमावत
उदयपुर 21 फ़रवरी। आलोक संस्थान, हिरण मगरी सेक्टर 11 में डॉ. प्रदीप कुमावत द्वारा समूह ध्यान सभा का आयोजन किया गया जिसके अंतर्गत संस्थान के सभी बालकों व अध्यापकों ने भाग लिया ।
डॉ. प्रदीप कुमावत ने कहा कि ब्राह्मणों के माध्यम से श्रुति पंरपरा का प्रचलन हुआ और तत्कालीन समय में इसे बढ़ावा भी मिला। हमारे प्राचीन ग्रंथों में 18 पुराणों का उल्लेख मिलता है जहाँ कई सारी कथाएँ एवं वार्ताओं के द्वारा ज्ञान की गंगा बहती हुई दृष्टिगत होती है । इनमें सृष्टि की रचना से पहले परमब्रह्म ब्रह्माजी के बारे में विशिष्ट जानकारी मिलती है कि किस प्रकार उन्होंने सृष्टि की रचना में अपना योगदान दिया ।
उन्होंने कहा कि मनुष्य का सबसे बड़ा धर्म है सत्य बोलना या सत्य का साथ देना। और सबसे बड़ा अधर्म है असत्य बोलना या असत्य का साथ देना। उन्होंने कहा कि पौराणिक गाथाओ को घर घर मे सुनाने की परंपरा फिर से कायम हो।
डॉ कुमावत ने कहा कि आदि से अंत तक सबसे पहले स्वनिर्मित ब्रह्म ने सृष्टि को आकार दिया और ब्रह्मवेदों को कैसे प्रकट किया यह भी जानकारी इनमें प्राप्त होती है। इनमें ब्रह्मा के द्वारा भगवान विष्णु के कानों से मधु और कैटभ नाम के दो राक्षसों की उत्पत्ति और उनके विनाश के बारे में भी वर्णन मिलता है। हयग्रीव ने जंघाओं पर रख कर कैसे उन्हें मारा और उनके शरीर से निकले मेद से जिस भूमि का निर्माण हुआ उसे ‘ मेदपाट ‘ नाम से जाना जाने लगा।
डॉ कुमावत ने कहा कि शिव के बारहवें रुद्र अवतार को हनुमानजी कहा गया और ग्यारह रुद्र अवतारों को मनुष्य शरीर में समाहित कर दिया गया। वृषभ को धर्म का प्रतीक कहा गया। सृष्टि की रचना में शिव के अर्धनारीश्वर स्वरुप को विशेष माना गया और उनसे उत्पन्न प्रथम पुत्र मनु और पुत्री ब्राह्मी कहलाये का वर्णन भी हमारे पुराणों में मिलता है।
हरि और हर शब्दों की उत्पत्ति पर चर्चा करते हुए बताया कि हमारी सभ्यता और संस्कृति महान है और आज भारत सभी को साथ लेकर चलने का भाव रखने के कारण विश्वगुरु के रूप में अग्रणी नाम माना जाने लगा है और ‘ कृण्वन्तो विश्वमार्यम ‘ के संदेश को बढ़ावा मिला है।