अचानक समर्थन वापस लिया; रात में राज्यपाल को बताया- कल 370 खत्म
तारीख 1 जनवरी 2015, गुलमर्ग के एक रिसॉर्ट में जम्मू कश्मीर के पूर्व CM मुफ्ती मोहम्मद सईद और PDP विधायक हसीब द्राबू खामोश बैठे थे। दोनों ही राज्य में सरकार बनाने की संभावनाएं तलाश रहे थे। दरअसल, दिसंबर 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में किसी भी दल को बहुमत नहीं मिला था।
87 सीटों वाली विधानसभा में 28 सीटों के साथ PDP सबसे बड़ी पार्टी और 25 सीटों के साथ BJP दूसरे नंबर पर थी।
इसी बीच मुफ्ती के फोन की घंटी बजी। फोन रखने के बाद मुफ्ती ने हसीब से कहा- ‘कल सुबह आपको दिल्ली जाना है। वहां कब और किससे मिलना है, इसकी जानकारी दिल्ली एयरपोर्ट पहुंचते ही मिल जाएगी।’
अगले दिन हसीब जैसे ही दिल्ली एयरपोर्ट पहुंचे, उन्हें एक फोन आया। फोन पर उन्हें खास जगह पर एक शख्स से मिलने के लिए कहा गया। कुछ देर बाद हसीब उस शख्स से मिले। दोनों के बीच बातचीत हुई, फिर वहां से हसीब को मुंबई जाने के लिए बोला गया।
कुछ देर बाद हसीब मुंबई के छत्रपति शिवाजी एयरपोर्ट पहुंच गए। वहां उनकी मुलाकात राम माधव से हुई। RSS से आए राम माधव तब BJP के राष्ट्रीय महासचिव थे।
दोनों के बीच जम्मू-कश्मीर में गठबंधन को लेकर पहली बार बात हुई। हसीब ने उसी दिन कॉमन मिनिमम प्रोग्राम का पहला ड्राफ्ट बनाया, लेकिन आर्टिकल 370 और हुर्रियत कॉन्फ्रेंस (अलगाववादी नेताओं का एक समूह) से बातचीत जैसे कुछ मुद्दों पर सहमति नहीं बनी। 9 जनवरी 2015 को जम्मू-कश्मीर में राज्यपाल शासन लग गया।
करीब दो महीने बाद 26 फरवरी को हसीब फिर से दिल्ली पहुंचे। रात में उनकी मुलाकात पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली और राम माधव से हुई। काफी देर तक तीनों के बीच बातचीत हुई, पर हुर्रियत कॉन्फ्रेंस को लेकर पेंच फंस गया।
PM नरेंद्र मोदी और अमित शाह का साफ स्टैंड था कि केंद्र सरकार हुर्रियत नेताओं से बात नहीं करेगी। दूसरी तरफ मुफ्ती ने हसीब से साफ-साफ कह रखा था कि हुर्रियत नेताओं से बातचीत के बिना कोई गठबंधन नहीं होगा।
उसी रात अरुण जेटली ने अमित शाह से मुलाकात की। दोनों के बीच रात के करीब एक बजे तक बात हुई। इसके बाद अरुण जेटली ने हसीब से कहा कि कॉमन मिनिमम प्रोग्राम में हुर्रियत कॉन्फ्रेंस को भी शामिल कर लीजिए। हसीब थोड़ा हैरान भी हुए और खुश भी, पर वे इस बात से बेखबर थे कि BJP का यह स्टैंड सत्ता के लिए नहीं, बल्कि जम्मू कश्मीर में कुछ बड़ा करने के लिए है।