बिहार-छत्तीसगढ़ में दर्ज FIR पर एक्शन न हो, अदालत ने कहा- शिकायतकर्ताओं को भी शामिल करें
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (19 अप्रैल) को योग गुरु रामदेव की एक याचिका पर सुनवाई की। जिसमें उन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान एलोपैथिक दवाओं के इस्तेमाल के खिलाफ उनकी टिप्पणियों पर दर्ज कई FIR क्लब करने और दिल्ली ट्रांसफर करने की मांग की थी।
जस्टिस एमएम सुंदरेश समेत 2 जजों की बेंच ने बाबा रामदेव से उन लोगों को भी पार्टी बनाने का निर्देश दिया है, जिन्होंने व्यक्तिगत तौर पर उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। बेंच ने सुनवाई की अगली तारीख जुलाई में तय की है।
बाबा रामदेव के खिलाफ IMA के पटना (बिहार) और रायपुर (छत्तीसगढ़) चैप्टर ने 2021 में FIR की थी। अपनी याचिका में रामदेव ने केंद्र, बिहार, छत्तीसगढ़ और IMA को पार्टी बनाया है। रामदेव ने इन FIR पर एक्शन रोकने की मांग भी की थी।
रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के खिलाफ IMA की याचिका पर पहले से सुनवाई जारी है। जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन की बेंच ने उन्हें 7 दिन का समय दिया है। इस मामले में अगली सुनवाई 23 अप्रैल को है।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन की याचिका 23 अप्रैल को सुनवाई
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट पहले से ही इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) की ओर से 17 अगस्त 2022 को दायर की गई याचिका पर सुनवाई कर रहा है। इसमें कहा गया है कि पतंजलि ने कोविड वैक्सीनेशन और एलोपैथी के खिलाफ गलत प्रचार किया। वहीं, खुद की आयुर्वेदिक दवाओं से कुछ बीमारियों के इलाज का झूठा दावा किया।
16 अप्रैल की सुनवाई के दौरान जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अमानतुल्लाह की बेंच के सामने बाबा रामदेव और बालकृष्ण तीसरी बार पेश हुए। इस दौरान बाबा रामदेव ने कहा था कि काम के उत्साह में ऐसा हो गया। लेकिन कोर्ट ने उनसे कहा- आप इतने मासूम नहीं हैं। लग नहीं रहा कि आपका हृदय परिवर्तन हुआ है।
डॉ. शर्मा ने कहा- जब हम कोविड से लड़ रहे थे, तो रामदेव ने वैज्ञानिक चिकित्सा का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। जब हम अपने 800 सहकर्मियों की मौत पर शोक मना रहे थे, तब वह कहते रहे कि जो डॉक्टर खुद को नहीं बचा सके, वे जनता को नहीं बचा सकते।
डॉ. लेले ने बताया- जल्द ही, कोरोनिल का लॉन्च हुआ, जिसे पतंजलि ने गलत तरीके से कोविड के इलाज के रूप में प्रचारित किया। उनका दावा था WHO ने इसे सर्टिफाइ किया है। हमने RTI के जरिए इस दावे का खंडन किया।
दोनों डॉक्टरों ने यह भी कहा कि पहले FIR के जरिए मामला सुलझाने की कोशिश की गई। और विभिन्न सरकारी निकायों से हस्तक्षेप करने कहा गया, लेकिन कोई एक्शन नहीं हुआ। इसलिए उन्हें कोर्ट में घसीटा गया।