ई-पेपर

40 दिन की तपस्या, फिर ‘अग्नि परीक्षा’


लपटों के ऊपर से निकालते हैं शरीर के अंगों को; परिवार से दूर रहकर मंदिरों में गुजरती है रात

आग की लपटों के ऊपर से मुंह, हाथ-पैर और सीने को निकालते हुए ये लोग हैं..गवरी नृत्य के कलाकार। ये लोग 40 दिनों तक अपने घर से दूर रहकर इसमें हिस्सा लेते हैं। इसके बाद जब बारी गवरी नृत्य के विसर्जन की आती है तो इन्हें इन 40 दिनों की तपस्या की प​वित्रता को साबित करने के लिए ‘अग्नि परीक्षा’ से गुजरना पड़ता है। इसे गावरी में ‘माता जी का होला डालना’ कहते हैं। खास बात ये है कि ये रात 12 बजे के बाद होती है, लेकिन इससे पहले माता जी के मंदिर में इसकी अनुमति लेनी होती है। ऐसी ही अग्नि परीक्षा हुई उदयपुर शहर के आयड स्थित गवरी माता के मंदिर में। रात 12 बजे गवरी में भाग लेने वाले खास सदस्य ( भोपा , राई और बुढ़िया सहित करीब 10 लोग, जो स्वांग रचते हैं ) अपने मुंह और सीने को आग की लपटों के ऊपर से निकालकर पवित्रता को साबित किया। जब तक गवरी नृत्य चलता है, इन्हें गवरी के नियमों जैसे-हरी सब्जी नहीं खाना, मांस-शराब का सेवन नहीं करना और पैरों में जूते-चप्पल नहीं पहनने आदि नियमों का पालन करना पड़ता है।​​​​​

40 दिनों तक होती है कठिन तपस्या

सदस्य 40 दिन तक परिवार से पूरी तरह दूर रहते हैं और किसी देवालय में ही विश्राम करते हैं। जमीन पर सोते हैं। पूरा दिन गांव-मोहल्लों औऱ चौक में गवरी नृत्‍यानुष्‍ठान में कई सारे खेल दिखाए जाते हैं। इन खेलों के माध्यम से वे समाज को जागरूक करते हैं। इस गवरी का मेन खेल वड़लिया बडलिया हिंदवा है। इसमें पेड़-पौधे कितने जरूरी हैं, उसके बारे में बताया जाता है। गवरी सुबह किसी चौक या चौराहे पर शुरू होती जो कि शाम तक चलती है। इसे देखने के लिए सैकड़ों लोग आते हैं। दिनभर में गणेश जी, राजा-रानी, कृष्ण लीला, चोर-डाकू, बंजारा मीणा की लड़ाई सहित कई सारे खेल-तमाशे दिखाए जाते हैं।

इस तरह से होती है अग्नि परीक्षा

गवरी के प्यारे लाल गमेती बताते हैं- इस परीक्षा में एक लोटे पर आटे की लोई से एक बड़ा दीपक बनाकर उसके चारों तरफ से बड़ी रूई को घी में भिगोकर जलाया जाता है। फिर गवरी में भाग लेने वाला सदस्य पहले अपने मुंह को आग की लपटों के ऊपर से निकाल कर उसे गिराता है। इसके बाद वो अपने कंधे, सीने, घुटने, पांव को भी इसी तरह आग के ऊपर से निकालता है। सबसे खास बात इसमें किसी कलाकार को कुछ भी नहीं होता है। इतिहासकार श्रीकृष्ण जुगनू बताते हैं- अगर 40 दिनों की गवरी में किसी ने ​यदि गवरी के नियम का पालन नहीं किया होता है तो ये आग उसे नुकसान पहुंचाती है। अगर पालन ठीक से किया है तो किसी को कुछ नहीं होता है। इस तरह गवरी के सदस्य अपने पवित्रता की अग्नि परीक्षा देते हैं।


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Need Help?