ई-पेपर

सब्जीवाले को आतंकी बताकर उठाया, फिर मारी गई गोली


पिता ने 31 साल नंगे पैर लड़ी लड़ाई, पंजाब के 58 फेक एनकाउंटर की दास्तान

22 जून, 1993 की बात है। पंजाब के तरन तारन में रहने वाले चमन लाल के घर अचानक कुछ पुलिसवाले पहुंचे। चमन और उनके 3 बेटों को थाने ले गए। कुछ दिन बाद चमन और दो बेटों को छोड़ दिया, लेकिन एक बेटे गुलशन को नहीं छोड़ा। पुलिस ने उसे एक महीने हिरासत में रखा। 22 जुलाई को गुलशन की मौत की खबर मिली। पता चला कि पुलिस ने आतंकी बताकर उसका एनकाउंटर कर दिया। परिवार को उसकी डेडबॉडी तक नहीं मिली। तब चमन लाल ने कसम खाई कि बेटे के इंसाफ मिलने तक चप्पल नहीं पहनेंगे। चमन का परिवार बंटवारे के वक्त पाकिस्तान से भारत आया था। बेटा गुलशन सब्जी बेचता था। उसके एनकाउंटर के 31 साल बाद जून 2024 में CBI कोर्ट ने फैसला सुनाया। कोर्ट ने तत्कालीन DSP दिलबाग सिंह और SHO गुरबचन सिंह को दोषी मानकर सजा सुनाई।

पाकिस्तान में जमींदार थे, पंजाब आकर दिहाड़ी मजदूरी करनी पड़ी गुलशन के पिता चमन लाल पाकिस्तान में जमींदार थे। वहां गुड़ और गोल्ड का कारोबार था। अपनी हवेली थी। 1947 में बंटवारे के बाद खाली हाथ पंजाब के तरन तारन आ गए। यहां दिहाड़ी मजदूरी करनी पड़ी। साइकिल पर कपड़े भी बेचे। हाथ बंटाने के लिए बेटे गुलशन ने सब्जी बेचनी शुरू कर दी। हम गुलशन के परिवार से मिलने अमृतसर से करीब 35 किमी दूर तरन तारन के जिंडयाला पहुंचे। घर में एक्टिविस्ट जसवंत सिंह खालड़ा की तस्वीर लगी थी। जसवंत की रिपोर्ट के बाद ही 90 के दशक में फेक एनकाउंटर में मारे गए लोगों का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।

पंजाब में 1990 के दशक में जब आतंक चरम पर था, पुलिस ने करीब 2000 लाशों को लावारिस बताकर अंतिम संस्कार कर दिया या उन्हें नदी-नहर में फेंक दिया। इसका खुलासा करने वाले जसवंत सिंह खालड़ा को भी घर से उठाकर मार दिया गया। CBI ने जसवंत सिंह खालड़ा केस समेत कुल 70 केस रजिस्टर किए। इनमें से दिसंबर 2024 तक 58 केस में कोर्ट ने पुलिस को दोषी माना। अब सिर्फ 12 केस पेंडिंग हैं। दैनिक भास्कर ने 27 जनवरी को खालड़ा के फेक एनकाउंटर पर स्टोरी पब्लिश की थी। आज पार्ट-2 में पढ़िए गुलशन कुमार की कहानी।

हम गुलशन के परिवार से मिलने अमृतसर से करीब 35 किमी दूर तरन तारन के जिंडयाला पहुंचे। घर में एक्टिविस्ट जसवंत सिंह खालड़ा की तस्वीर लगी थी। जसवंत की रिपोर्ट के बाद ही 90 के दशक में फेक एनकाउंटर में मारे गए लोगों का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था।

यहां हमें गुलशन कुमार के छोटे भाई बॉबी मिले। 22 जून 1993 की घटना पर बॉबी कहते हैं, ‘उस वक्त हम 2 कमरे के मकान में रहते थे। तीन भाई और एक बहन थी। रात के करीब पौने 10 बज रहे थे। हम लोग रेडियो सुन रहे थे। तभी पुलिसवाले आए। पूछने लगे कि गुलशन कुमार कौन है। हम सब भाई-बहनों और पिता को पकड़ लिया।’

‘हमारे साथ बहन को ले जाते देख गली के लोग जमा हो गए। पुलिस से कहा कि रात में लड़की को मत ले जाओ। विरोध के बाद पुलिसवालों ने मेरी बहन को छोड़ दिया, लेकिन हम तीनों भाई और पापा को थाने ले गए। कुछ दिनों बाद पहले पापा और फिर हम दो भाइयों को छोड़ दिया, लेकिन गुलशन भैया को नहीं छोड़ा।’

गुलशन को एक महीने थाने में रखा, फिर एनकाउंटर की खबर आई बॉबी आगे बताते हैं, ‘पुलिस ने करीब 1 महीने तक भैया को थाने में रखा। हम रोज उन्हें खाना देने जाते थे। एक दिन पापा खाना लेकर थाने गए, लेकिन भैया वहां नहीं थे। एक पुलिसवाला पापा को थोड़ी दूर ले गया और बोला- अब आप गुलशन के लिए रोटी लेकर मत आना। पुलिस ने उसे मार दिया।’

‘ये सुनते ही पापा तरन तारन के सरकारी अस्पताल पहुंचे। वहां स्टाफ और अधिकारियों से भैया के बारे में पूछा। पोस्टमॉर्टम करने वाली एक डॉक्टर ने बताया कि एनकाउंटर में मारे गए एक लड़के को मैं जानती हूं। उसका नाम गुलशन था। वो मेरे घर सब्जी देने आता था। ये सुनते ही पापा समझ गए कि पुलिस ने भैया को मार दिया है।’


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Need Help?