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राजस्थान में कांग्रेस की पहली लिस्ट का एनालिसिस


हार की हैट्रिक टालने के लिए कोई चेहरा रिपीट नहीं, गहलोत-पायलट को भी यही डर था

एक मशहूर कहावत है, ‘दूध का जला छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है…।’ पिछले दो लोकसभा चुनाव में राजस्थान में अपना खाता नहीं खोल पाई कांग्रेस ने इस बार टिकट बंटवारे में काफी प्रयोग किए हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव को जालोर-सिरोही से टिकट मिलने के बाद उनके चुनाव लड़ने की संभावना खत्म हो गई है।

पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट को लेकर माना जा रहा था कि वो टोंक-सवाई माधोपुर से चुनाव लड़ेंगे, लेकिन वहां इनके समर्थक विधायक को टिकट दिया गया है।

अब बड़े के नाम पर कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा और पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी की सीट बची है। सीपी चुनाव हारे हुए हैं तो संभवत: वो चुनाव लड़ लें। बाकी डोटासरा की संभावना कम ही नजर आ रही है।

10 प्रत्याशियों की पहली सूची में कोई भी चेहरा रिपीट नहीं किया है। यहां तक कि 2014 के प्रत्याशियों को भी दुबारा मौका नहीं दिया है।

एक और खास बात, अब तक कयास लगाए जा रहे थे कि अशोक गहलोत जैसे नेता लोकसभा चुनाव लड़ेंगे, लेकिन ये साफ हो गया है कि बड़े नेता चुनाव मैदान में जाने से बच रहे हैं।

कांग्रेस की पहली सूची में ऐसा क्या है जो नजर नहीं आ रहा?
पहली सूची में कांग्रेस में अशोक गहलोत और सचिन पायलट खेमों को बैलेंस करने का प्रयास किया गया है। गहलोत गुट के 4 व पायलट गुट के 3 नेताओं को टिकट दिया गया है। इसके लिए 3 न्यूट्रल टिकट दिए गए हैं।

कुछ प्रश्नों में समझते हैं टिकट वितरण में क्या रहा आधार…

कांग्रेस ने सभी सीटों पर प्रत्याशी बदले, इसके पीछे क्या कारण है?
कांग्रेस के पास लोकसभा चुनाव में राजस्थान में खोने के लिए कुछ नहीं है। पार्टी पिछले दो चुनावों में एक भी सीट नहीं जीती है। 2014 से पहले कांग्रेस 20 सीट जीतती थी। ऐसे में पुराना आजमाया हुआ फॉर्मूला अपनाया गया है। जातिगत और जनाधार वाले नेताओं को नए इलाकों में टिकट दिए गए हैं।

कांग्रेस पर एक दबाव ये भी है कि राजस्थान विधानसभा चुनाव में वोटर्स के बीच कांग्रेस का प्रभाव दिखाई देता है, लेकिन लोकसभा चुनाव में वोटिंग पैटर्न बदल जाता है।

तो क्या वैभव गहलोत के सामने जालोर-सिरोही में संकट नहीं है?
ऐसा नहीं है। जोधपुर की तुलना में जालोर में चुनौतियां कम हैं, लेकिन विधानसभा चुनाव को देखें तो मारवाड़ का पूरा इलाका BJP का गढ़ बन चुका है। सीट के अंदर आने वाले जालोर, सिरोही और सांचौर जिले की बात करें तो यहां पर 8 सीटें हैं। विधानसभा चुनाव में इनमें से सिर्फ 3 सीटें ही कांग्रेस ने जीती हैं। दूसरा अप्रवासियों की संख्या ज्यादा है, जो गुजरात व महाराष्ट्र से आते हैं व BJP बैकग्राउंड के माने जाते हैं।

उदयपुर ST रिजर्व सीट पर इस बार दो अफसरों में मुकाबला होगा। दोनों ही अफसर उदयपुर में रह चुके हैं। कांग्रेस ने उदयपुर में कलेक्टर रहे ताराचंद मीणा को उताकर नया चेहरा दिया है। भाजपा ने यहां पर डीटीओ रहे अतिरिक्त परिवहन आयुक्त मन्नालाल रावत को टिकट दिया है। दोनों उम्मीदवारों के मैदान में होने से यहां मुकाबला रोचक हो गया है। ऐसा ही चूरू सीट पर देखने को मिलेगा।

भाजपा-कांग्रेस की सूची में बेसिक अंतर क्या है?
भाजपा ने एक भी मौजूदा विधायक नहीं उतारा, वहीं कांग्रेस ने तीन उतारे हैं। बाकी देखें तो जैसा बैलेंस कांग्रेस की पहली सूची में दिख रहा है, वैसा ही भाजपा की 15 नामों वाली पहली सूची में दिखाई दिया था। भाजपा के 8 प्रत्याशी OBC वर्ग से हैं और इसमें से भी 4 प्रत्याशी जाट समाज से आते हैं। वहीं ब्राह्मण, वैश्य और राजपूत समाज को एक-एक सीट पर मौका दिया। कुल मिलाकर 3 सवर्ण कैंडिडेट हैं। वहीं, SC-ST से भी दो-दो टिकटें दी गई हैं।


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