3 निर्दलीय विधायकों ने समर्थन वापस लिया; CM सैनी के पास 88 में से 43 MLA का सपोर्ट बचा
हरियाणा में लोकसभा चुनाव के बीच BJP को बड़ा झटका लगा है। राज्य में जजपा से गठबंधन टूटने के बाद भाजपा की सरकार बनाने वाले 3 निर्दलीय विधायकों ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया। समर्थन करने वाले निर्दलीय विधायकों में पुंडरी से विधायक रणधीर गोलन, नीलोखेड़ी से धर्मपाल गोंदर और चरखी दादरी से विधायक सोमवीर सांगवान शामिल हैं। इन तीनों विधायकों ने रोहतक में पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा की मौजूदगी में कांग्रेस के समर्थन का ऐलान किया। बादशाहपुर से राकेश दौलताबाद के भी कांग्रेस को समर्थन की चर्चा है लेकिन वे यहां नजर नहीं आए।
कैबिनेट विस्तार के दौरान नायब सैनी की कैबिनेट में रणजीत चौटाला के अलावा इनमें से किसी निर्दलीय विधायक को जगह नहीं मिली थी। इसी बाद से चारों विधायक नाराज थे। इसके बाद अब 90 विधायकों वाली हरियाणा विधानसभा में भाजपा सरकार अल्पमत में आ गई है। यहां अभी 88 विधायक हैं। जिनमें से भाजपा के पास 43 विधायकों का समर्थन बचा है। वहीं विपक्ष में 45 विधायक हो गए हैं।
भूपेंद्र हुड्डा ने राष्ट्रपति शासन की मांग की
सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने निर्दलीय विधायकों के कांग्रेस के समर्थन के ऐलान के बाद कहा कि हरियाणा में भाजपा सरकार अब अल्पमत में आ गई है। नैतिकता यही कहती है कि अब मुख्यमंत्री नायब सैनी को इस्तीफा देकर चुनाव करवा लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि जजपा का अब हरियाणा सरकार को समर्थन नहीं है, सरकार को समर्थन देने वाले निर्दलीय विधायक भी कांग्रेस के साथ आ गए हैं, ऐसे में सरकार अब बहुमत के आंकड़े से दूर हो चुकी है।
क्या CM नायब सैनी की भाजपा सरकार अल्पमत में?
हां, हरियाणा में कुल 90 विधायक हैं। बहुमत का आंकड़ा 46 का है। अभी करनाल और सिरसा की रानियां सीट खाली है। इसके बाद विधानसभा में 88 विधायक बचे हैं। भाजपा के अपने 40 विधायक हैं। अभी तक उन्हें 6 निर्दलीय और एक हलोपा विधायक का समर्थन था। जिनमें से रणजीत चौटाला इस्तीफा दे चुके हैं। वहीं अब 3 विधायकों ने समर्थन वापस ले लिया। इसके बाद भाजपा के पास 2 निर्दलीय व हलोपा विधायक गोपाल कांडा के साथ से 43 विधायकों का समर्थन है।
अविश्वास प्रस्ताव कैसे लाया जाता है?
सबसे पहले विपक्षी दल या विपक्षी गठबंधन को लोकसभा अध्यक्ष या स्पीकर को इसकी लिखित सूचना देनी होती है। इसके बाद स्पीकर उस दल के किसी विधायक से इसे पेश करने के लिए कहते हैं। जब किसी दल को लगता है कि सरकार सदन का विश्वास या बहुमत खो चुकी है। तब वो अविश्वास प्रस्ताव पेश कर सकता है।\स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव को मंजूरी दे देते हैं, तो प्रस्ताव पेश करने के 10 दिनों के अंदर इस पर चर्चा जरूरी है। इसके बाद स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग करा सकता है या फिर कोई फैसला ले सकता है।