उदयपुर में बोले भौतिक सुख-सुविधाओं पर कंट्रोल करें, जीवन में लेने के साथ देने का भी भाव रखे\
पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उदयपुर में बुजुर्गों के बीच कुछ समय बिताया और उनके गीत व अनुभवों को सुना। वे सपत्नीक हिरणमगरी सेक्टर 14 में तारा सेवा संस्थान के 12 साल पुरे होने पर पर मां द्रोपदी देवी आनंद वृद्धाश्रम में पहुंचे। इस मौके पर एक बुजुर्ग ने उन्हें गाना भी सुनाया।
कार्यक्रम में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि बुजुर्ग बोझ नहीं, वह एसेट है, वह अनुभव का खजाना है और हमारी सम्पत्ति है। एक परिवार में बुजुर्गों की जितनी उपयोगिता होती वह हर समय उनकी उपयोगिता सार्थक होती है।
उन्होंने कहा कि हर परिवार की अपनी अलग कहानियां होती है। कोई कहानी छोटी होती है कोई बड़ी होती है। उन्हें सुनने और सुनाने में ही हमारा जीवन गुजर जाता है। इसलिए हमें यह सोचना चाहिये कि हमने आज तक केवल लिया ही लिया है समाज को दिया क्या है। जिस दिन आप में देने का भाव आ जाएगा तो यकीन माने जितना आनन्द आपको लेने में आ रहा था उससे ज्यादा देने में आएगा।
कोविंद ने मेवाड़ की धरती की महानता को दर्शाते हुए कहा कि इस धरती पर महाराणा प्रताप, भामाशाह ओर मीरा बाई जैसी महान विभूतियां हुई है। जिन्हें देश ही नहीं दुनिया में महानता प्रदान की जाती है। उदयपुर के लोग अपनी सभ्यता ओर संस्कृति के लिए कभी भी पीछे नहीं हटते हैं। इस धरा की कहानियां प्रेरणादायी हैं।
उन्होंने कहा कि आज के दौर में परिवार में बढ़ते विघटन एवं भौतिक सुख सुविधाओं की प्राप्ति की महत्वाकांक्षाओं के चलते घर के युवा अक्सर बुजुर्ग माता- पिता को अकेला छोड़ कर रोजगार ओर आर्थिक लाभ के लिए चले जाते हैं। भौतिक महत्वाकांक्षाएं उन्हें ऐसा करने पर मजबूर करती है। इसमें उनकी भी कोई गलती नहीं है। उन्हें जीवनयापन के लिए ऐसा करना ही पड़ता है।
इसी तरह से बुजुर्गों के घर में अेकेले रहने का दूसरा कारण यह भी सामने आता है कि पहले हमारे यहां पर संयुक्त परिवार की परम्परा हुआ करती थे लेकिन धीरे-धीरे बदलते दौर में यह परम्परा लगभग खत्म हो रही है। बदलते दौर में यह सब तो होगा और हो रहा है लेकिन इसका समाधान क्या है इसके लिए हमें मन्थन करने की जरूरत है।
कोविंद जब संस्थान के बुजुर्गों के मेडिकल वार्ड में पहुंचे तो वहां पर उनकी सारी मेडिकल सुविधाओं की जानकारी ली एवं बुजुर्गों के स्वास्थ्य के बारे में जाना। इसी वार्ड में बुजुर्ग बृजकिशोर शर्मा से जब कोविन्द मिले और उनका हालचाल जानने के बाद वहां से जाने लगे तब उन्हें पता लगा कि ये गाना बहुत अच्छा गाते हैं। यह सुन कर कोविंद ने कहा कि चलो तो फिर सुनाओ गाना। बृजकिशोर ने गाना सुनाया।