आधी रात हाथों में तलवार लेकर ललकारते चले, माहौल ऐसा कि कोई बड़ा युद्ध छिड़ा हो
हर रास्ते पर ललकारने की आवाज का शोर, हाथों में तलवारें। थोड़ी देर में बारूद के धमाके, बंदूकों और तोपों से आग उगलने लगी। तड़ातड़ बंदूकों की आवाज से ऐसा लगा मानों युद्ध हो रहा हो। रात को ढाई बजे के बाद जाकर ये शोर थमा।
यह माहौल था उदयपुर से करीब 45 किलोमीटर दूर उदयपुर-चित्तौड़गढ़ नेशनल हाइवे पर मेनार गांव का। बुधवार की रात सवा 10 बजे बाद गांव में बारूद की होली शुरू हो गई। परम्परागत रूप से होली के बाद आने वाली दूज तिथि (जमराबीज) को ये होली खेली जाती है, जिसे देखने बड़ी संख्या में आसपास के जिलों और मध्यप्रदेश से लोग आए।
52 गांवों के लोग हुए शामिल
ऐतिहासिक बारूद की होली की शुरूआत होने से पहले सालों से निभाई जा रही परम्परा निभाई गई। गांव में दोपहर में शाही लाल जाजम बिछी, जिस पर अम्लकुस्लमल की रस्म हुई। इसमें 52 गांवों से मेनारिया ब्राह्मण समाज के पंच, मौतबीर शामिल हुए। इस रस्म से बारूद की होली की शुरूआत होती है। उसी समय से ढोल भी बजने लगते है।
400 सालों से खेल रहे है ये होली
मुगलों की सेना को शिकस्त देने के उत्साह में पिछले 400 साल से ज्यादा समय से मेनार में गोला-बारूद की होली खेली जाती है। दरअसल मुगलों की सेना को इस इलाके के रणबांकुरों ने अपने शौर्य और पराक्रम के बल पर शिकस्त दी थी, उसी खुशी में जमराबीज के दिन यहां की अनूठी होली मनाई जाती है।
रात 2.40 बजे तक चली बारूद की होली
मुख्य चौक पर पटाखों की गूंज, आग के गोले, गरजती बंदूकें, खनकती शमशीरों के बीच सिर पर कलश लिए महिलाएं वीर रस के गीत गाती चल रही थी। हवाई फायर, गुलाल बरसने के साथ रणजीत ढोल बजते रहे और पुरुष आतिशबाजी करते हुए थम्ब चौक की ओर बोदरी माता की घाटी पर 300 मीटर का रास्ता एक घंटे में तयकर पहुंचे। बारूद की होली का क्रम रात 2.40 बजे तक चला।