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भारत बोला- हमारे हित अफगानिस्तान से जुड़े


कहा- यहां आतंक को पनाह नहीं मिलनी चाहिए, सबको साथ लेकर चलने वाली सरकार की जरूरत

भारत के उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (डिप्टी NSA) विक्रम मिस्री ने शुक्रवार को कहा कि भारत के हित अफगानिस्तान से जुड़े हुए हैं। अफगानिस्तान का इस्तेमाल लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकवादी संगठनों को पनाह और ट्रेनिंग देने के लिए नहीं होना चाहिए।

मिस्री किर्गिस्तान की राजधानी बिश्केक में अफगानिस्तान को लेकर हुई सुरक्षा परिषद सचिवों और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की छठी क्षेत्रीय बैठक को संबोधित कर रहे थे। बैठक में भारत के अलावा रूस, चीन, ईरान, किर्गिस्तान, कजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान जैसे देशों के NSA भी शामिल थे।

तस्वीर में भारत के डिप्टी NSA विक्रम मिस्री अफगानिस्तान से जुड़ी बैठक में अपनी बात रखते नजर आ रहे हैं।
तस्वीर में भारत के डिप्टी NSA विक्रम मिस्री अफगानिस्तान से जुड़ी बैठक में अपनी बात रखते नजर आ रहे हैं।

डिप्टी NSA ने कहा- अफगानिस्तान में अस्थिरता पूरे क्षेत्र के लिए खतरा
इस दौरान उन्होंने कहा- भारत हमेशा से अफगानिस्तान में शांति, सुरक्षा और स्थिरता के समर्थन में रहा है। पड़ोसी होने के नाते भारत और अफगानिस्तान के आर्थिक और सुरक्षा संबंधी हित एक-दूसरे से जुड़े हैं। अफगानिस्तान में अस्थिरता पूरे क्षेत्र के लिए खतरा है।

मिस्री ने कहा- अफगानिस्तान में आतंकवादियों और उनसे जुड़े संगठनों को किसी भी तरह की मदद नहीं मिलनी चाहिए। खासकर वो आतंकवादी जिन पर UNSC ने प्रतिबंध लगा रखा है। भारत हमेशा से अफगानिस्तान में समावेशी सरकार के गठन के साथ ही महिलाओं, बच्चों और अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा का समर्थन करता है।

भारत ने 2.49 लाख करोड़ का निवेश किया
भारत ने अब तक यहां 2.49 लाख करोड़ का निवेश किया है। भारत अफगानिस्तान के 34 प्रांतों में चल रहे 500 प्रोजेक्ट्स का हिस्सा है। ये प्रोजेक्ट्स क्षेत्र में पानी, बिजली, हेल्थकेयर, एजुकेशन, खेती और निर्माण कार्यों से जुड़े हैं।

मिस्री ने आगे कहा- भारत ने अब तक करीब 50 हजार टन गेहूं, 250 टन मेडिकल एड और 28 टन भूकंप से जुड़ी राहत सामग्री भेजी है। UN की तत्काल अपील को देखते हुए भारत ने 40 हजार लीटर मैलाथियान (एक तरह का इंसेक्टिसाइड) की भी मदद की है।

इस दौरान डिप्टी NSA ने सेंट्रल एशियाई देशों को समुद्री व्यापार के लिए ईरान के चाबहार पोर्ट के साथ ही शहीद बाहेस्ती टर्मिनल का उपयोग करने के लिए भी कहा। उन्होंने अफगानिस्तान में व्यापार को बढ़ावा देने और आर्थिक विकास के लिए क्षेत्रीय कनेक्टिविटी की अहमियत पर जोर दिया।

भारत ने अभी तक तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी
बता दें कि भारत ने अब तक अफगानिस्तान में तालिबान सरकार को मान्यता नहीं दी है। ऐसे में अफगानिस्तान में भारत का प्रतिनिधित्व विदेश मंत्रालय के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों समेत एक तकनीकी टीम करती है। पिछले साल भारत में अफगानिस्तान की पुरानी सरकार के नियुक्त किए राजदूत पर दोनों देशों में तनाव बढ़ाने की कोशिश करने के आरोप लगे थे। इसके बाद भारत में अफगानिस्तान की ऐंबैसी बंद हो गई थी।

तब इस बात के कयास लगाए गए थे कि भारत तालिबान के प्रति अपने रुख में नर्मी ला रहा है। वहीं, 26 जनवरी को संयुक्त अरब अमीरात (UAE) में भारतीय दूतावास ने गणतंत्र दिवस समारोह में अफगान के कार्यवाहक दूत बदरुद्दीन हक्कानी को आमंत्रित भी किया था।

कूटनीतिक मान्यता की मांग कर रहा तालिबान
तालिबान ने 15 अगस्त 2021 को काबुल के साथ ही पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था। इसके बाद से वो लगातार दुनिया से उसे मान्यता देने की मांग करता रहा है। तालिबान के कार्यकारी रक्षा मंत्री मुल्लाह मोहम्मद याकूब मुजाहिद ने अल-अरेबिया न्यूज चैनल को एक इंटरव्यू दिया था। इस दौरान उन्होंने कहा था- सरकार ने मान्यता हासिल करने के लिए सारी जरूरतों को पूरा किया है।

इसके बावजूद अमेरिका के दबाव में आकर दूसरे देश हमें मान्यता नहीं दे रहे हैं। हम उन देशों से मान्यता की अपील करते हैं जो अमेरिका के दबाव में नहीं हैं। हम चाहते हैं कि दुनिया के ताकतवर इस्लामिक देश हमें सरकार के तौर पर पहचानें।


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