गांव में परदादा का मंदिर, पिता के हेड कॉन्स्टेबल होने की बात गलत
आपको पता चलना चाहिए कि लॉरेंस किस परिवार से ताल्लुक रखता है। कोई ऐसा-वैसा परिवार नहीं है। हमारे पुरखों ने 1857 का गदर देखा, फ्रीडम फाइटर रहे। लॉरेंस ऐसे खानदान का बेटा है, जिसमें संत, लेखक, जज, वकील और IB ऑफिसर जैसे लोग हैं। हमारा परिवार देशभक्त है।’ साबरमती जेल में बंद गैंगस्टर लॉरेंस पर भले मर्डर, फिरौती, ड्रग्स और हथियारों की तस्करी के केस चल रहे हों, लेकिन उसके फुफेरे भाई इंदरपाल उसे क्रिमिनल नहीं मानते। वे कहते हैं, ‘लॉरेंस पर इतने आरोप लग रहे हैं, लेकिन आपको हमारे परिवार की हिस्ट्री जाननी होगी। तभी आप तय कर पाएंगे कि लॉरेंस क्या कर सकता है और क्या नहीं। मीडियावाले जल्दबाजी में आते हैं और जो मिलता है, उसे अपने ढंग से लिखते-दिखाते हैं।’
महाराष्ट्र में NCP लीडर बाबा सिद्दीकी के मर्डर में लॉरेंस गैंग का नाम आ रहा है। लॉरेंस के क्रिमिनल बनने की कहानी यूनिवर्सिटी से शुरू हुई थी। पहली FIR वहीं हुई, पहली बार जेल भी कॉलेज स्टूडेंट रहते हुए ही गया। उससे पहले लॉरेंस की जिंदगी कैसी थी, ये जानने के लिए दैनिक भास्कर उसके गांव दुरातांवाली पहुंचा। यहां दो बातें ऐसी पता चलीं, जो मीडिया में गलत चल रही हैं। पहली कि लॉरेंस के पिता हेड कॉन्स्टेबल थे और दूसरी कि लॉरेंस को उसका परिवार हर साल 35-40 लाख रुपए खर्च के लिए भेजता है।
मंदिर में घुसते ही सामने एक बड़ी फोटो लगी है। हवन कुंड बना है। लोग फोटो की पूजा करते हैं। पूछने पर पता चला कि ये बिल्डिंग लॉरेंस के पुरखों ने बनवाई थी। उसकी बुआ के बेटे इंदरपाल ने हाल में बिल्डिंग की मरम्मत कराई है।
गांव में लॉरेंस के परदादा का मंदिर, लोग उनकी पूजा करते हैं दुरातांवाली गांव दिल्ली से करीब 450 किमी पंजाब के फाजिल्का जिले में है। यहीं लॉरेंस का जन्म हुआ था। गांव में घुसते ही सामने लाल रंग की शानदार बिल्डिंग दिखती है। गांववाले इसे महात्मा श्री साहबराम जी राहड़ का मंदिर कहते हैं। साहबराम राहड़ लॉरेंस के परदादा थे।
हमने लॉरेंस के परिवार को तलाशना शुरू किया। लॉरेंस के फुफेरे भाई इंदरपाल से फोन पर बात की। उन्होंने कहा, ‘गांव के बाहर बने साहबराम जी के मंदिर में आ जाइए।’
हम वहां पहुंचे तो इंदरपाल और लॉरेंस के चचेरे भाई रमेश मौजूद थे। सीढ़ियों पर बैठे इंदरपाल मंदिर से ही बात शुरू करते हैं। कहते हैं, ‘हम जिस जगह बैठे हैं, ये मेरे परनाना और लॉरेंस के परदादा साहबराम जी राहड़ की समाधि है। समाधि स्थल बहुत पुराना है। मैंने इसकी मरम्मत करवाई है।’ अंदर की ओर इशारा करते हुए इंदरपाल बताते हैं’ ‘संत साहबराम जी की समाधि इस तरफ है। समाधि के भीतर कांच के बक्से में उनका शरीर और उनके हाथ का लिखा ग्रंथ रखा है।’ फिर इंदरपाल कांच के एक बॉक्स में रखी किताब की तरफ इशारा करते हैं। कहते हैं- ‘ये जो ग्रंथ दिख रहा है न, इसी की एक कॉपी समाधि के भीतर भी है।’
इंदरपाल हमें एक किताब दिखाते हैं। किताब का नाम ‘सार शब्द गुंजार’ है। इसे प्रयाग के पब्लिकेशन हाउस ने पब्लिश किया है।
इंदरपाल आगे कहते हैं, ‘साहबराम जी के दो बेटे थे, लक्ष्मीनारायण और गणेशीराम। लक्ष्मीनारायण जी के दो बेटे थे दोंकल राम और विष्णुदत्त। लॉरेंस के पिता लविंदर राहड़ जी विष्णुदत्त के बेटे हैं। गणेशी राम जी के बेटे संत कुमार और प्रेम सुध जी हुए। संत कुमार जी ने 1978 में जीव रक्षा सभा की नींव रखी थी। अभी मैं इसका प्रेसिडेंट हूं।’
लॉरेंस के पिता हेड कॉन्स्टेबल नहीं थे, खानदान में कोई पुलिस में नहीं रहा इंदरपाल ने आगे बात करने के लिए शर्त रखी। बोले कि आपको धैर्य के साथ हमारे परिवार की हिस्ट्री जाननी होगी। मीडिया ने बिना फैक्ट जाने बहुत कुछ लिख दिया। सब लिख रहे हैं कि लॉरेंस के पिता हेड कॉन्स्टेबल थे। हमारे खानदान में कोई पुलिस में नहीं रहा। हम जमींदार हैं। भला हेड कॉन्स्टेबल की नौकरी क्यों करेंगे। तभी इंदरपाल के बगल में बैठे रमेश बोल पड़ते हैं, ‘और उन्हें जरूरत भी नहीं थी। उनके पास 110 एकड़ खेती है। इतनी खेती जिसके पास होगी, वो क्या हेड कॉन्स्टेबल बनेगा।’
परिवार में IB ऑफिसर, जज और एडवोकेट… इंदरपाल कहते हैं, ‘मैं एडवोकेट हूं। हरियाणा में पब्लिक प्रॉसिक्यूटर था। पहली पोस्टिंग 1982 में जींद में हुई थी। फतेहाबाद भी रहा। कुछ साल पंजाब में रहा। दो साल पहले VRS ले लिया। लॉरेंस के मामा हरियाणा में सेशन जज की पोस्ट से रिटायर हुए थे।’ ‘मामा के लड़के चंडीगढ़ हाईकोर्ट में वकील हैं। लॉरेंस के फूफाजी इंटेलिजेंस ब्यूरो में थे। अब रिटायर हो गए हैं। बुआजी भी सरकारी नौकरी में थीं। वे हिसार में रहती हैं। परिवार में सब पढ़े-लिखे हैं। मेरी मां 1952 में हॉस्टल में रहकर पढ़ती थीं।’