रोंकिनी के सुर और आरती के कथक ने बांधा समां, शास्त्रीय संगीत से सराबोर हुआ माहौल
पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र की ओर से शिल्पग्राम में तीन दिवसीय ऋतु वसंत उत्सव के पहले दिन की क्लासिकल प्रस्तुतियों में समां बांध दिया। शास्त्रीय और पार्श्व गायिका रोंकिनी गुप्ता ने भी प्रस्तुति दी।
रोंकिनी गुप्ता ने विलंबित एकताल में बड़ा ख्याल की ‘नीके लागे तोरे नैन’ की बंदिश पेश की तो तमाम कला प्रेमी सुरों में जैसे खो से गए। इसके बाद मध्य लय की बंदिश ‘धीर कैसे धरूं सजनी…’ की पेशकश पर क्लासिकल के जानकारों का हृदय झंकृत कर दिया, तो द्रुत लय एकताल में ‘अचर ना धरो मुरारी…’ और राग हंसध्वनि में रूपक में ‘तराना’ की प्रस्तति से समां बांध दिया।
संगीतकार एआर रहमान की फेवरेट क्लासिकल सिंगर रोंकिनी ने ‘मोरी पैजनिया…’ की द्रुत बंदिश तीन ताल में पेश कर खूब तालियां बटोरी। ज्यों-ज्यों शाम ढलने लगी, रोंकिनी की लयकारी और सुरों की जादूगरी के साथ ही तबले की उम्दा संगत ने अपनी रोशनी बिखेर शिल्पग्राम प्रांगण को शुद्ध भारतीय संगीत से जगमग रखा।
उन्होंने राग सोहनी में ‘डारूंगी-डारूंगी तोहपे रंग सांवरिया…’ और तीन ताल में ‘रंग ना डारो श्याम जी…’ पेश किया तो श्रोता वाह-वाह कर उठे। उनके साथ तबले पर दीपक मराठे और हारमोनियम पर आशीष रागवानी ने संगत की।
इस शास्त्रीय सांझ में कथक ने क्लासिकल के अनूठे रंग भर दिए जब प्रसिद्ध नृत्यांगना डॉ.आरती सिंह ने अपनी टीम के साथ कथक के बदलते और निरंतर निखरते रूप को पेश किया। उन्होंने भक्तिकाल, मुगलकाल और आधुनिक काल में कथक के विभिन्न रूपों की बहुत की बारीकी से प्रस्तुति दी।
इसके बाद उन्होंने खूबसूरत लयकारी और ताल में बसंत ऋतु को बहुत ही उम्दा तरीके से उकेरा। उषा शर्मा, तेजस्विता नंदिनी शाह, राशि कौर, पारूल कुंभालकर, प्रेरणा देवांगन, चिरंजीवी हल्दर और नरेंद्र छत्री ने उनका साथ दिया।
आज वायलिन-संतूर की जुगलबंदी और शास्त्रीय गायन
पश्चिम क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र के निदेशक फुरकान खान ने बताया कि ‘ऋतु वसंत’ उत्सव में शनिवार को पं.राजकुमार मजूमदार, उस्ताद असगर हुसैन और उस्ताद अख्तर हसन की वायलिन और संतूर की खूबसूरत जुगलबंदी और जयपुर के शास्त्रीय गायक सौरभ वशिष्ठ की गायकी रहेगी।