चित्तौड़गढ़ (स्पेशल स्टोरी: अमित कुमार चेचानी)
कभी-कभी जीवन में कुछ ऐसी घटनाएं घटती है जो हमें किसी युग की याद दिलाती है। ऐसी ही एक रोचक घटना हाल ही में मेवाड़ विश्वविद्यालय में हुई वाद विवाद प्रतियोगिता के दौरान घटी, ऐसा लग रहा था मानो जैसे कि द्वापर युग में भगवान श्री कृष्णऔर सुदामा का मिलन हो रहा हो।
कहानी कुछ इस तरह शुरू हुई कि मेवाड़ विश्वविद्यालय में सेवाएं दे रहे प्रोफेसर (डॉ.) लोकेश शर्मा जब ओंकारेश्वर दर्शन के लिए गए तो उन्हें एक राजस्थानी वेशभूषा में पगड़ी धारण किए हुए लाइन में लगे हुए एक सीधा साधा आदमी दिखा, तो उन्होंने वेशभूषा को देखकर लगा कि यह राजस्थानी होगा, चलो इससे बात करते हैं, उनसे बात की तो उन्होंने कहा कि मैं बांसी के पास गांव का मूल निवासी हूं मेरा नाम चतुर्भुज पाटीदार है, और ज्योंहि बांसी गांव का नाम लिया तो उन्होंने कहा कि आप अशोक कुमार गदिया जी को जानते हैं जो की बांसी गांव के ही मूल निवासी है, तो ग्रामीण बताया की हां मैं उनको जानता हूं और उनके पिताजी का नाम नंदलाल गदिया और उनके दादाजी का नाम हीरालाल है और हम तीन साल तक साथ-साथ पढ़े हैं उन्होंने बचपन की यादों को ताजा करते हुए कहा कि हम साथ में खेलाकूदा करते थे और एक दूसरे के परिवारों में आना-जाना खाना पीना साथ में होता था, लेकिन उसके बाद हम नीमच जिले में रहने चले गए थे, तो इस पर जवाब में शर्मा जी ने कहा पता है तुम्हें अब उनका परिवार वह नहीं रहा जो पहले था अब वह बहुत बड़े आदमी हो गए हैं उनकी यूनिवर्सिटी है कॉलेज हैं और बहुत सारे काम है।
इस पर शर्मा जी ने दोनों बाल सखाओं को मिलवाने की ठानी। ऐसा मौका शीघ्र आया और मेवाड़ विश्वविद्यालय में होने वाली राष्ट्रीय स्तर की वाद विवाद प्रतियोगिता में जहां सैकड़ो की संख्या में देश भर के शहरों व राज्यों से विभिन्न विश्वविद्यालय कॉलेज से प्रतिभागी इसमें शामिल हुए थे शर्माजी ने सोचा दोनों को मिलाने का यह बहुत ही उपयुक्त समय है।
दिनांक 29 फरवरी को जब सैकड़ो की संख्या में भरे हुए हाल में कार्यक्रम में सभी अतिथियों का स्वागत किया जा रहा था, तब लोकेश शर्मा ने चतुर्भुज पाटीदार का नाम पुकारा और उन्हें मंच पर बुलाया और मेवाड़ विश्वविद्यालय के कुलाधिपति डॉ. अशोक कुमार गदिया के सामने खड़ा किया तो वह एक दूसरे को पहचान नहीं रहे थे। लेकिन जब उनका परिचय देते हुए बताया आप दोनों बचपन में एक साथ में पढ़े हुए है और यह आपके बाल सखा है तो उनकी आंखों में आंसू थे और एक दूसरे से गले लग गए। पचास साल के बाद दोनों बाल सखाओं का मिलना मानों एक युग बाद दोनों मिले हो। साथ ही चतुर्भुज जी दोनों के रोल नंबर का भी जिक्र किया।
यह क्षण इतना भावुक था कि पूरे हॉल में उपस्थित सभी जनों की आंखों में खुशी के आंसू छलक रहे थे और खड़े होकर जोरदार तालियों से उनका अभिनंदन किया और चतुर्भुज पाटीदार जी का परंपरागत ढंग से स्वागत किया गया और उन्हें वही सम्मान दिया गया जो अन्य अतिथि को दिया गया। सच में साक्षात ऐसा लग रहा था कि कलयुग में सुदामा और कृष्ण का मिलन देखने को मिल रहा है।