पिता का सपना पूरा करने क्रिकेटर बनीं उदयपुर की दो बेटियां, खुद भरवाई जमीन और बनाया स्कूल ग्राउंड
सरकारी स्कूल के पास मौजूद खाई को 1050 डंपर मिट्टी डलवा कर ग्राउंड के रूप में तब्दील किया। आज इसी स्कूल की बेटी उदयपुर में चल रही नेशनल क्रिकेट टूर्नामेंट में राजस्थान की टीम से खेल रही है। इस बिटिया ने 4 विकेट लेकर प्लेयर ऑफ द मैच का खिताब भी जीता। वहीं इसी टीम से खेल रही उदयपुर की एक और बेटी है जिसने नेशनल में सिलेक्शन के लिए 12वीं में फिर से एडमिशन ले लिया। उसके 12वीं में 72 परसेंट आए थे। ये दो कहानियां हैं भल्लों का गुड़ा की रहने वाली ममता झाला और धार गांव की तनिष्का चौधरी की। दोनों राजस्थान की टीम के लिए खेल रहीं हैं। तनिष्का के पिता खुद क्रिकेटर रहे हैं तो ममता के पिता प्राइवेट बस चलाते हैं।
68वीं नेशनल स्कूल क्रिकेट टूर्नामेंट (गर्ल्स अंडर-19) 29 जनवरी बुधवार से शुरू हुआ था। यह नेशनल टूर्नामेंट 3 फरवरी तक चलेगा। इसमें 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की टीमें पहुंची हैं। इसमें राजस्थान की टीम सेमीफाइनल में महाराष्ट्र से हार गई। इसके बाद आज तीसरे पायदान के लिए झारखंड से भिड़ेगी। इसमें 22 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की टीमें पहुंची हैं।
पिता ड्राइवर बेटी ने किया कमाल
ममता झाला बतातीं हैं- उन्हें बचपन से ही क्रिकेट का शौक था। पिता टमर सिंह प्राइवेट बस चलाते हैं। झाला कहतीं हैं लड़कों को क्रिकेट खेलते देखती तो इच्छा होती थी कि मैं भी खेलूं। 10वीं के बाद क्रिकेट खेलना शुरू किया था। ममता बॉलिंग और बेटिंग दोनों करती हैं। ममता ने बताया कि वह स्कूल में सुबह 7 से 9 बजे तक क्रिकेट प्रैक्टिस करती हैं। फिर वापस घर जाकर 10 बजे स्कूल आती हैं। उनकी स्कूल भल्लों का गुड़ा सरकारी सी. सेकेंडरी घर से ढाई किमी दूर है। कोई संसाधन नहीं है ऐसे में, दौड़ कर या पैदल चलकर ही स्कूल जाना पड़ता है।
सरकारी स्कूल की 6 बेटियां मेडल लाईं
ममता के कोच और भल्लों का गुड़ा सरकारी स्कूल के पीटीआई गणपत सिंह झाला ने बताया कि 4 साल पहले उनके स्कूल में ग्राउंड नहीं था। ऐसे में भामाशाह और स्टाफ के सहयोग से 15 लाख रुपए जुटाकर नई बिल्डिंग और ग्राउंड बनवाया। जिसका नतीजा ये हुआ कि लास्ट ईयर 12 बच्चे स्टेट खेले। जिसमें 6 लड़कियों ने मेडल जीते। हर साल कबड्डी, क्रिकेट, फुटबॉल, एथलेटिक्स में टीम उतारते हैं।
नेशनल के लिए 12वीं दोबारा की
ममता स्कूल से छुट्टी बाद माता-पिता के साथ घरेलू कामकाज और खेती-बाड़ी में भी हाथ बंटाती हैं। लास्ट ईयर अंडर-17 स्टेट क्रिकेट टूर्नामेंट में खेलते हुए टीम विजेता रही थी लेकिन ममता का चयन नेशनल टीम में नहीं हो पाया। इसलिए ममता ने 72% से 12वीं पास करने के बावजूद वापस उसी क्लास में एडमिशन लिया। आज नेशनल खेल रही हैं। ममता का सपना वुमेंस इंडिया टीम में खेलने का है।
1050 डंपर मिट्टी लगाकर खाई भरी
कोच पीटीआई नीरज बत्रा बताते हैं- धार स्कूल में 4 साल पहले मैदान नहीं था। सड़क पर प्रैक्टिस कराते थे। डीआरडीओ के सहयोग से 1050 डंपर मिट्टी डलवा कर खाई को पाटा। फिर ग्राम पंचायत की मदद से मैदान को समतल कराया। मैदान पथरीला था तो प्रशासन से आग्रह कर दो सीमेंट क्रिकेट पिच और एक टेनिस कोर्ट बनवाया। जहां क्रिकेट खिलाड़ी रोज प्रैक्टिस करती है। स्कूल से अब तक स्टेट लेवल पर 150 और 50 लड़के-लड़की नेशनल खेल चुके हैं।
एक खिलाड़ी इंटरनेशनल जा चुकी
पीटीआई बताते हैं स्कूल से एकमात्र खिलाड़ी डाली गमेती पिछले साल एशियन लेक्रोज चैम्पियनशिप उज्बेकिस्तान खेलने गई थी। जहां उसने सिल्वर मेडल जीता था। भामाशाहों के सहयोग से प्रैक्टिस नेट, ग्लव्ज, पैड, विकेट, गेंद आदि किट मुहैया कराई। यहां तक की जरूरत पड़ने खुद ने भी आर्थिक सहयोग दिया। आज से सुबह-शाम लड़कियों को प्रैक्टिस कराते हैं। इसके अलावा तनिष्का वंडर एकेडमी में भी प्रैक्टिस करती हैं।